मछली हेतु तालाब की तैयारी बरसात के पूर्व ही कर लेना उपयुक्त रहता है। मछलीपालन सभी प्रकार के छोटे-बड़े मौसमी तथा बारहमासी तालाबों में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसे तालाब जिनमें अन्य जलीय वानस्पतिक फसलें जैसे- सिंघाड़ा, कमलगट्टा, मुरार (ढ़से ) आदि ली जाती है, वे भी मत्स्यपालन हेतु सर्वथा उपयुक्त होते हैं। मछलीपालन हेतु तालाब में जो खाद, उर्वरक, अन्य खाद्य पदार्थ इत्यादि डाले जाते हैं उनसे तालाब की मिट्टी तथा पानी की उर्वरकता बढ़ती है, परिणामस्वरूप फसल की पैदावार भी बढ़ती है। इन वानस्पतिक फसलों के कचरे जो तालाब के पानी में सड़ गल जाते हैं वह पानी व मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाता है जिससे मछली के लिए सर्वोत्तम प्राकृतिक आहार प्लैकटान (प्लवक) उत्पन्न होता है। इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं और आपस में पैदावार बढ़ाने मे सहायक होते हैं। धान के खेतों में भी जहां जून जुलाई से अक्टूबर नवंबर तक पर्याप्त पानी भरा रहता है, मछली पालन किया जाकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की जा सकती है। धान के खेतों में मछली पालन के लिए एक अलग प्रकार की तैयारी करने की आवश्यकता होती है।
किसान अपने खेत से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत जोते जाते है, खेतों की मेड़ों को यथा समय आवश्यकतानुसार मरम्मत करता है, खरपतवार निकालता है, जमीन को खाद एवं उर्वरक आदि देकर तैयार करता है एवं समय आने पर बीज बोता है। बीज अंकुरण पश्चात् उसकी अच्छी तरह देखभाल करते हुए निंदाई-गुड़ाई करता है, आवश्यकतानुसार नाइट्रोजन, स्फूर तथा पोटाश खाद का प्रयोग करता है। उचित समय पर पौधों की बीमारियों की रोकथाम हेतु दवाई आदि का प्रयोग करता है। ठीक इसी प्रकार मछली की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए मछली की खेती में भी इन क्रियाकलापों का किया जाना अत्यावश्यक होता है।